Saturday, 7 June 2025

धम्म चर्चा : असमानता तथा अल्पायु-दीर्घायु का कारण


(मुल लेखक : भिक्षु नारद महाथेरो, कोलंबो श्रीलंका, यह अंग्रेजी किताब यहाँ उपलब्ध है|  ) 

मानवता के बीच मौजूद इस अकल्पनीय, स्पष्ट असमानता से हैरान होकर, सत्य की तलाश में शुभ नामक एक युवा सच्चा साधक बुद्ध के पास गया और उनसे इस बारे में प्रश्न किया।

"हे भगवा, क्या कारण है कि हम मनुष्यों में अल्पायु (अप्पयुका) और दीर्घायु (दीघायुका), रोगी (बव्हाबाधा) और स्वस्थ (अप्पबाधा), कुरूप (दुब्बाणा) और सुन्दर (वण्णावंता), शक्तिहीन (अप्पेसक्का) और शक्तिशाली (महेसक्का), दरिद्र (अप्पभोगा) और धनी (महाभोगा), निम्न कुल (नीचकुलिना) और उच्च कुल (उचकुलिना), अज्ञानी (दुप्पन्ना) और बुद्धिमान (पञ्णावंता) पाते हैं? " १ 



बुद्ध का उत्तर था:

१. "सभी जीवित प्राणियों के कर्म (कर्म) उनके अपने होते हैं, उनकी विरासत, उनका जन्मजात कारण, उनका सगा-संबंधी, उनका आश्रय। यह कर्म ही है जो प्राणियों को निम्न और उच्च अवस्थाओं में विभेदित करता है।" 

फिर उन्होंने कारण और प्रभाव के नियम के अनुसार ऐसे अंतरों के कारणों की व्याख्या की। 


२. यदि कोई व्यक्ति जीवन को नष्ट करता है, शिकारी है, अपने हाथ खून से रंगता है, हत्या और घाव करने में लगा रहता है, और जीवों के प्रति दया नहीं रखता है, तो वह अपनी हत्या के परिणामस्वरूप, जब मनुष्यों के बीच पैदा होगा, तो अल्पायु होगा। 

यदि कोई व्यक्ति हत्या से बचता है, डंडा और हथियार का त्याग करता है, और सभी जीवों के प्रति दयालु और करुणामय है, तो वह, जब मनुष्यों के बीच पैदा होगा, तो अपनी अ-हत्या के परिणामस्वरूप, दीर्घायु होगा। 

३. यदि कोई व्यक्ति मुक्का, डंडा, तलवार से दूसरों को नुकसान पहुंचाने की आदत रखता है, तो वह अपनी इस बुराई के परिणामस्वरूप मनुष्यों के बीच जन्म लेने पर अनेक रोगों से ग्रस्त होगा

यदि कोई व्यक्ति दूसरों को नुकसान पहुँचाने की आदत में नहीं है, तो वह अपनी हानिरहितता के परिणामस्वरूप, जब मनुष्यों के बीच पैदा होगा, तो अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करेगा। 


४. यदि कोई व्यक्ति क्रोधी और अशांत है, किसी छोटी सी बात से चिढ़ जाता है, क्रोध, द्वेष और आक्रोश को बाहर निकालता है, तो वह अपनी चिड़चिड़ेपन के परिणामस्वरूप, जब मनुष्यों के बीच पैदा होगा, तो कुरूप हो जाएगा।

 यदि कोई व्यक्ति क्रोधी और अशांत नहीं है, गाली-गलौज से भी चिढ़ता नहीं है, क्रोध, द्वेष और आक्रोश को बाहर नहीं निकालता है, तो वह अपनी मिलनसारिता के परिणामस्वरूप, जब मनुष्यों के बीच पैदा होगा, तो सुंदर हो जाएगा। 


५. यदि कोई व्यक्ति ईर्ष्यालु है, दूसरों के लाभों से ईर्ष्या करता है, दूसरों के प्रति सम्मान और आदर का भाव रखता है, अपने हृदय में ईर्ष्या रखता है, तो वह अपनी ईर्ष्या के परिणामस्वरूप, जब मनुष्यों के बीच पैदा होगा, तो शक्तिहीन हो जाएगा। 

यदि कोई व्यक्ति ईर्ष्या नहीं करता, दूसरों के लाभ से ईर्ष्या नहीं करता, दूसरों के प्रति आदर और सम्मान का भाव नहीं रखता, अपने हृदय में ईर्ष्या नहीं रखता, तो ईर्ष्या के अभाव के कारण वह मनुष्य जाति में जन्म लेने पर शक्तिशाली होगा।


६. यदि कोई व्यक्ति दान के लिए कुछ नहीं देता है, तो वह अपने लालच के परिणामस्वरूप, जब मनुष्यों के बीच पैदा होगा, तो वह गरीब होगा। यदि कोई व्यक्ति दान देने पर तुला हुआ है, तो वह अपनी उदारता के परिणामस्वरूप, जब मनुष्यों के बीच पैदा होगा, तो वह अमीर होगा। 


७. यदि कोई व्यक्ति जिद्दी है, अभिमानी है, सम्मान के योग्य लोगों का सम्मान नहीं करता है, तो वह अपने अहंकार और असम्मान के परिणामस्वरूप, जब मनुष्यों के बीच पैदा होगा, तो वह नीच होगा।

यदि कोई व्यक्ति हठी नहीं है, अभिमानी नहीं है, सम्मान के योग्य लोगों का सम्मान करता है, तो वह अपनी विनम्रता और आदर के कारण, जब मनुष्यों में जन्म लेगा, तो उच्च कुल का होगा। 


८. यदि कोई व्यक्ति विद्वान और गुणी लोगों के पास नहीं जाता है और यह नहीं पूछता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है, क्या सही है और क्या गलत है, क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, क्या उसके कल्याण के लिए है और क्या उसके विनाश के लिए है, तो वह अपनी गैर-जिज्ञासा भावना के कारण, जब मनुष्यों में जन्म लेगा, तो अज्ञानी होगा।

यदि कोई व्यक्ति विद्वान और गुणी लोगों के पास जाता है और पूर्वोक्त तरीके से पूछताछ करता है, तो वह अपनी जिज्ञासु भावना के कारण, जब मनुष्यों में जन्म लेगा, तो बुद्धिमान होगा।


निश्चित रूप से, हम वंशानुगत विशेषताओं के साथ पैदा होते हैं। साथ ही हमारे पास कुछ जन्मजात क्षमताएँ होती हैं, जिनका विज्ञान पर्याप्त रूप से हिसाब नहीं लगा सकता। हम अपने माता-पिता के ऋणी हैं, जो इस तथाकथित प्राणी के नाभिक का निर्माण करने वाले स्थूल शुक्राणु और अंडाणु के लिए हैं। वे तब तक निष्क्रिय रहते हैं, जब तक कि भ्रूण के उत्पादन के लिए आवश्यक कर्माधारित ऊर्जा द्वारा इस संभावित जीवाणु-संबंधी यौगिक को सक्रिय नहीं किया जाता। इसलिए कर्म इस प्राणी का अपरिहार्य संकल्पनात्मक कारण है। 

पिछले जन्मों के दौरान विरासत में मिली संचित कर्म प्रवृत्तियाँ (संखार-संस्कार), कभी-कभी शारीरिक और मानसिक विशेषताओं के निर्माण में वंशानुगत माता-पिता की कोशिकाओं और जीनों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।  (उदाहरण : जैसे शेक्सपियर के माता पिता दोनों अशिक्षित थे | )

संदर्भ :

१. मानव की सत्ता अपने आप के (पुराने और नए) कर्म  है ,मनुष्य अपने (पुराने और नए) कर्म का वारिस है,वह अपने (पुराने और नए) कर्म की ही उपज है , कर्म मनुष्य सबसे योग्य बंधु है ,अपने कर्म के अनुसार ही मनुष्य सोचता है, कर्म के अनुसारही मानव सत्ता का विभाजन हीन या उच्च  कुलीन इत्यादी भिन्न परिस्थितियों में होता है ।

(कुल्लाकम्माविभंग सुत्त [मज्झिम  निकाय 135]) ऐतिहासिक सम्मानित राजा मिलिंद के समान प्रश्न पर नागसेन का उत्तर | वॉरेन, Buddhism in Translation, p. 214. , पृष्ठ भी देखें। 214

२. लक्खण सुत्त (दीघ निकाय - 30)


धन्यवाद !

संबोधन धम्मपथी

(भाषानुवादक)

Thursday, 29 May 2025

धम्मदृष्टी कार्यशाळेची रुपरेषा

 धम्मदृष्टी कार्यशाळेची  रुपरेषा : ०८ जुन २०२५ 

वेळ :सकाळी  ९ ते दुपारी ३ । स्थळ : श्रावस्ती बुद्धविहार, मुलुंड पश्चिम 

१. ९:०० - ९:१५ : रेजिस्ट्रेशन 

२. ९:१५ - ९:३० : आनापान  ध्यान शिबिर 

३. १०:०० - ११:०० : धम्माची वैशिष्ट्ये आणि जीवनाचा उद्देश्य 

४. ११:० - ११:३० : वरील विषया वर धम्म चर्चा  

५. ११:३० - १२:३० : नशीब, देव की कर्म सिद्धांत 

६ . १२:३० : - १:०० : वरील विषया वर धम्म चर्चा 

७ . १:० : - १:४५ : जेवणाची वेळ 

८. १:४५  - २:३० : आवश्यकता पडल्यास धम्म चर्चा 

९. २:३०  - ३:०० : कार्यक्रमाची सांगता


नोंद:

  1. मोबाईल सायलेंट वर ठेवावा लागेल 
  2. फोन वर बोलायचे असल्यास बाहेर जावे लागेल. 
  3. नोंदणी फी १०० रुपये, विहाराला दान दिले जाईल. 
  4. फक्त १५ सदस्यांना प्रवेश आहे. 

Saturday, 3 May 2025

अभिप्राय: बौद्ध विहारों का तिसरा राष्ट्रीय अधिवेशन (औरंगाबाद)

 अभिप्राय :   बौद्ध  विहारों का तिसरा राष्ट्रीय अधिवेशन (औरंगाबाद / छत्रपती संभाजीनगर , २६-२७ एप्रिल २०२५ )


सप्रेम जयभीम !

अपने अच्छे मित्रों के कारण बहुत बार अच्छे कार्यक्रम, अच्छे विचार और महाअनुभवी व्यक्तियों से परिचय होता है | कुछ ऐसा ही हुआ; जो मेरे पुराने मित्र सदानंद जाधव के द्वारा की महाअनुभाव आदरणीय अशोक सरस्वती बौद्ध जी और उनके मंगलमय संकल्प (भारतीय बौद्ध विहारोंका समन्वय) से व्यक्तिगत रूप से परिचय हुआ | 

मैं अशोक जी के मंगलमय संकल्प और उनके सहकारी यों का बहुत आभारी हुं| उनकी इस सुदूरदृष्टि एवं प्रकल्प को मेरी और से बहुत बहुत शुभकामनाएं | इसी अवसर पर मैंने कुछ उचित धनराशी भी सहयोग हेतु दी है|  उनके इस मंगलमय स्वप्न को शीघ्रतम और परिपूर्णता के साथ पूरा करने हेतु, मैं यह अपना कर्तव्य ही समझता हूं और इसीलिए  इस कार्यक्रम का अभिप्राय लिखने बैठा हुँ | आशा है कि इससे समाज को सहायता मिलेगी | 

१. पांच प्रसन्नकारी बातें जो मुझे अच्छी लगी:
१. अशोक जी की भूमिका (बौद्ध विहारोंका समन्वय ओर समस्या निवारण ) उनकी दूर दृष्टि, उनका नियोजन
२. कार्यक्रम के स्थल का चुनाव; जिससे कि कार्यक्रम ठीक से पुरा हो | 
३. उपस्थित श्रोतागणों के पंजीकरण और आय-कार्ड वितरण जिससे लोकसंपर्क एवं समन्वय सधे |  
४. सृजनशील व्यक्तियों से संपर्क: जिन्होंने मोबाइल एप्लीकेशन और वेबसाइट के निर्माण किया |  
५. स्वयंसेवकों का सेवाभाव  

२. पांच अप्रसन्नकारी बातें जो मुझे अच्छी नहीं लगी:
१. लगभग ८०-९० % प्रवक्ता और सत्र अध्यक्षों ने ऐसी कोई बातें नहीं कही  जिसे अशोक जी के बुद्धा विहार समन्वय भुमिका राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वित या फिर किसी प्राथमिक समस्या क निवारण हो | उसको कार्यांवित करने के लिए श्रोताओं को विशेष रुप से सक्षम या क्रियाशील बना सके | उनका धैर्य, साहस, सूझ--बुझ  और सेवाभाव बढ़े। 
२. इस अधिवेशन के दोनों ही दिन, में हर दिन ९० मिनट की परित्राण पाठ पाली में हो रहा था| जो भाषा ९९% प्रतिशत लोगों को समझ में नहीं आती, तो अनुमान लगाइए कितना सारा समय व्यर्थ गया। श्रोताओं के उत्साह और आशा को जो क्षति पहुंची वो भी अलग बात है | 
३. मान्यवरों की स्वागतप्रथा  के कार्यक्रम में बहुत सारा समय निकल गया, पर श्रोताओं का क्या लाभ हुआ नहीं समझ पाया |  अशोक जी ने मना करने के बावजूद भी सुत्रसंचालक ने  न मानकर औपचारिकता पुरी की थी  | 
४. बौद्ध भिक्षुओं ने भी में उचित मार्गदर्शन नहीं किया जिससे विहारों के समन्वय की उद्देश्यपुर्ती हो | प्रमुख बौद्ध भिक्षु कहा ने भिक्षु-उपासकोंको के बारे में कहा कि अपने ही होंठ और अपनेही दांत है | परंतु सारा समय उपासक की कमियां/गलतियां बताने पर ही था| भिक्षुओंके के व्यवहार/आचरण के बारे में कुछ भी नहीं कहा! तो दांतों के लिए अलग व्यवहार हुआ और होटों के लिया अलग व्यवहार साबित हुआ |  उन्होंने युवाओं को ताने भी मारे  (भगवान बुद्ध ने कभी ताने मारे थे, ऐसा अब तक त्रिपिटक में नहीं पढ़ा है)  |  दूसरे भंते जी ने हेतुपुर्वक विनोद का वातावरण बनाया, पर उनका ध्यान उपासकों के जेब पे ही था | उनको अपना प्रकल्प गर्भ मंगल विधी उद्देश्य की विशेष मंजिल इमारत की ज्यादा जरुरत लगी, न की विहारोंके समन्वय की ! उनको बोलने की लिए १० मिनिट का समय दिया गया था, और उन्होंने  अपने उद्देश्य के लिए ४०-५० मिनिट का समय ले लिया | यह धम्म संगत और प्रसंगोचित नहीं लगा, न ही शील का पालन हुआ | न ही ये बातें विहारों के समन्वय बे बारे में कुछ मार्गदर्शन कराती है |   भिक्षुओंको तथागत ने तो अनात्म ( भिक्षु की किसी पर भी मलकियत/मैं मेरे ही भावना नहीं हों) भाव, अनित्य और दुःख के साथ सिखाया है | 





३. कुछ महत्वपुर्ण अनुत्तरीत प्रश्न :

१. किसी भी वक्ता का चुनाव करने से पहले क्या आयोजको ने :
    १.अ : क्या उनके लिखित भाषण का प्रथम मूल्यांकन बहुश्रुतोंद्वारा किया था, जिससे उनकी नियोजित विषय पर अनुसंधान (रिसर्च) और उपायों का आकलन हो ?
    १.ब:  क्या उनके अन्य लेखों और सेवाभाव को परखा था (क्योंकि ताने मारनेवाला सेवाभावी कैसे हो सकता है?) ?
    १.क : क्या वक्ता के मानवी गुणों का आकलन जैसे की  लोकसंपर्क, विनम्रता, भाषा प्रभुत्व, नवीनतम प्रणाली/तकनीक (PPT, RCA) , श्रोताओं के मनोवैज्ञानिक स्थिति, ध्यान आकर्षित करने की कला) को महत्त्व दिया गया था? 
    १. ड : क्या अनेक वक्ताओँ में से उनका मुल्यांकन, समग्र दृष्टिकोण  आधार मान कर ही चयन (filtering) हुआ था?

    १.इ : क्या वक्ताओं के दिशाहीन मार्गदर्शन का कारण, वक्ताओंका चयन करते समय उनके लेख -आचार-विचारों से भी अधिक महत्व उनके उपाधियों को  (डॉक्टर/प्राध्यापक/थेरो/महाथेरो/अध्यक्ष/सेक्रेटरी/संस्थापक)  दिया गया था ?
२.  क्या कभी बौध्दों के कार्यक्रम में स्त्रियां और नवयुवक नहीं आएंगे ? क्या हमेशा ९९  % बूढ़े लोग ही आएंगे? क्या बौद्ध विहार समन्वय समिती इसकी जाँच/कारणमीमांसा का बीडा उठाएगी?
३. क्या श्रोताओं को एक दूसरों के साथ जुड़ने के लिए तथा नियोजित विषय पर पर उनके मतों को समझने के लिए क्या वर्कशॉप/चर्चासत्र जैसे कार्यक्रम पर विमर्श हुआ था? जिससे श्रोताओं को अपने विचार रखने का कोई अवसर मिले | एक दूजे के साथ संपर्क का कि राह सुनियोजित हो?
४. क्या कारण हो सकता है कि, बौध्दों के कार्यक्रम में युवा वर्ग बिल्कुल आना पसंद नहीं करते?  "बाबा तेरा सपना अधूरा, गुटका खाकर करेंगे पूरा" जैसे मान्यवर भिक्षु के तानोंसे निराश/संतप्त हो जाते हैं ?और वह ऐसे कार्यक्रम में आना छोड़ देते हैं? ऐसे दुर्व्यवहार की जिम्मेदारी अपनेही 'दांत लेंगे या अपनेही होंठ' ? 
५. क्या उपस्थित मान्यवरो के स्वागतप्रथा के औपचारिकता के बिना क्या वें मार्गदर्शन नहीं कर सकते? छोड़ कर चले जाते है ?
६. क्या भिक्षु के 11:00 बजे भोजन देना और उपासक को 2:00 बजे तक भूखा रखना; क्या यह न्यायसंगत-मानवतासंगत-धम्मसंगत है ? या अनुशासनहीनता या फिर असमानता का द्योतक है ?
७. अधिवेशन में चीवरदान के समय  भिक्षुओं ने को घुटनोंपर क्यों बिठाया गया था  ? (पुर्वाश्रमीके राजकुमार रहा चुके) तथागत ने ऐसा दुर्व्यवहार वेश्या आम्रपाली, पिता के खुनी अजातशत्रु  और आतंकी डाकु अंगुलीमाल के साथ भी नहीं   किया नहीं किया था | तथागत ने कभी ऐसा दुर्व्यवहार किसी अन्य के साथ किया, और न ही अपने शिष्योंको सिखाया | अब तक तिपिटक का अध्ययन यही सूचित करता है | युगपुरुष बोधिसत्व बाबासाहब ने दान स्वीकार करते समय स्वयं झुके थे  (सन्दर्भ )
तो क्या वे उपस्थित भिक्षु बुद्ध और बोधिसत्व से ऊपर थे ? या फिर अधिवेशन में दानकर्ता अजातशत्रु/अंगुलिमाल/आम्रपाली से भी अधिक दुर्बोध/अभागे थे ? इसका उत्तर  भिक्षुओंको  त्रिपिटक के आधार पर ही देना होगा ! आदरभाव अनुभव पर आधारित होना चाहिए |  हेतुपुर्वक तुच्छ समझना या हीन दिखाना  गहरे अहंभाव का द्योतक लगता है | बुद्धवाणी के अनुसार सन्मान पुर्वक आचरण अपेक्षित है, तभी तो २६०० साल पहले बुद्धवाणी से समता प्रस्थापित हुयी थी  | जरा सोचिये क्या ये अस्वस्थ रूढ़िवादिता धम्मसंगत है ?

८. ९० मिनट की पाली गाथा के बजाय अशोक बौद्धजी द्वारा ली गयी  ५-१० मिनिट की  हिंदी गाथा प्रभावशाली क्यों लगी ?






४. इस अधिवेशन को विविध दृष्टिकोन से मूल्यांकन करके रेटिंग :
१. क्या आपको कार्यक्रम की भूमिका सही लगी ? ० में से १०  गुण 
२. क्या आपको कार्यक्रम के उद्देश्य पूर्ति के लिए समस्याओं और उनके समाधान के ऊपर उचित मार्गदर्शन मिला? १० में से ३ गुण 
३. क्या आपको धम्म-विद्वान और व्यवस्थापन (Management) - विद्वानों से संपर्क हुआ?  क्या उनसे कुछ मार्गदर्शन मिला? १० में से २ गुण 
४. क्या आपको बुद्ध विहारों मे स्त्रियों और युवकों को आकर्षित करने के उपाय मिले१० में से १ गुण 
५. क्या आपको धम्म के प्रचार और प्रसार के लिए नया ऊर्जा, नव चेतना और संयम प्राप्त करने के लिए उचित कल्पकता मिली?  १० में से २ गुण 
६. क्या एक क्या एक श्रोता के तौर पर आपका अभिप्राय या आपके विचारों को किसने जांचना चाहा आपकी प्रतिक्रिया किसने मांगी (जैसे की Google Forms) ? १० में से ० गुण 
७. क्या भोजन का समय और दर्जा सही था?  १० में से ६   गुण 
८. क्या आपके साथ आए हुए साथी या मित्र-परिचित प्रसन्न हुए? १० में से २ गुण 
९. विविध आयु / विविध शैक्षणिक स्तर / लिंग / विविध आर्थिक स्तर/ विविध बौद्धिक स्तर के लोगों से किस तरह से बातें रखी जाए, क्या आपको  किसी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से कोई मार्गदर्शन मिला? १० में से १ गुण 



५.  मेरे सुझाव : 

  • तथागत ने लोकभाषा में गाथाएं कही थी | तो आज की भाषा में बुद्ध वंदना लेनी चाहिए जिसे लोक समझकर जीवन में कार्यान्वित कर सके | जिसका समय ५-१० मिनिट का हो | 
  • राष्ट्रिय स्तर के अधिवेशन के वक्ताओं का चयन शिफारस से न होकर उनकी प्रतिभा, समयसुचकता, भाषणों के मुद्दों के विश्लेषण की कुशलता, नवीनतम अनुसंधान और ज्ञान के मूल्यांकन पर हो | और वक्तों की ऐसी विशेष परख और विशेषण के लिए  वर्षभर के मूल्यांकन की मेहनत हो | 
  • अनुशासनहीन मान्यवर, भिक्षु, संचालक, निवेदक, अध्यक्ष को भी  को बेल बजाकर निलंबित करने का अधिकार अशोक जी/ या अधिवेषण के अध्यक्ष को अवश्य हो | 
  • युवा वर्ग को सम्मिलित करने के लिए, वर्षभर विविध संस्थाओं के युवा वर्ग से जुड़ने का प्रयास हो |  युवा वर्ग के विचारप्रणाली की समर्थता/परिपक्वता, उनकी अपेक्षा,  उनकी समस्या और उनकी तकनीक का अध्ययन होने के बाद ही स्थानिक या राष्ट्रीय अधिवेशन की स्वरुप निश्चित हो | 
  • भिक्षु-उपासक के बारे में पक्षपाती / पैसा मांगने वाले  / ताने मारकर बोलने वाले /असेवाभावी  वाले भिक्षु/उपासकों (शील की  गाथा कहकर उपासकों  की जेब पर नजर रखने वाले भिक्षुओं ) का चयन न हो | नहीं तो यह बुद्ध के विनय के प्रतिकुल नीति होगी | 
  • श्रोताओं के मनोविज्ञान को जानकर उनके सक्रिय सहभाग के लिए वर्कशॉप / चर्चासत्र और प्रश्न उत्तर के सत्र का आयोजन हो

धन्यवाद !!

यदि मेरे कुछ विचार आपके सामने रखते हुए अगर मैं आपका कहीं मन दुखाया हो तो मैं आपसे क्षमा प्रार्थी  हूं | कार्यक्रम के दौरान, इस विषय में मैंने कुछ अन्य श्रोतओंसे भी बातचीत की  थी| उन सभी ने मेरे ऊपर के मतों को ठुकरा नहीं सके | उन में से कोई वकील, प्रोफेसर, डॉक्टर, ग्रॅज्युएट  और १२ पास लोग थे | 

हो सकता है, की  मेरे यह  सुझाव मनुष्यबल या फिर द्रव्यबल(पैसा) कारण संभव न हो| पर यह सुधारित नियोजन तो  बुद्धिबल का द्योतक है, ये मेरा दॄढ विश्वास है| मेरा उद्देश्य तो यही है कि अधिकाधिक नवयुवक और स्त्रियों का यहां पर सम्मेलन में सहभागी हों | जिससे आर्थिक और पारमार्थिक रूप से समाज का विकास हो | माननीय अशोकजी की भूमिका और देश के सारे बुद्ध विहार का समन्वय शीघ्र और परिपुर्ण तरह से हो | इसलिए अपने मनोगत और अपना अभिप्राय आपसे स्पष्ट रूपसे समीक्षा सहित साझा कर रहा हूं|  जय भीम, नमो बुद्धाय | 


आपका ऋणी ,
सम्बोधन धम्मपथी (९७७३१००८८६)
कॉम्पुटर इंजीनियर, आयटी क्षेत्र में २२ साल का अनुभव,
सर्टिफाइड आयएसटीक्युबी मैनेजर, Certified SCRUM Master,
त्रिपिटक वाचक, धम्मसेवक,
मुंबई, महाराष्ट्र 


Saturday, 12 April 2025

MSD Cast Validity

Other completed Docs

  1. Bonafide certificate
  2. Form 15A
  3. Principal's Recommendation

Maitrey's Doc (Applicant)

  1. Uploaded Form
  2. Payment Receipt
  3. Cast Certificate
  4. Adhar Card
  5. Affidavit Form 17
  6. Affidavit Form 3
  7. Passport Photo
  8. School Leaving Certificate
  9. Gazette Certificate
  10. Vanshaval (1950 proof)

Satish Dethe (Father)

  1. Adhar Card
  2. Cast Certificate
  3. Leaving Certificate HSC

Ashok Dethe (Grand Father)

  1. Adhar Card
  2. Caste Certificate
  3. Leaving Certificate


Prathamesh (Paternal Uncle)

  1. Caste Certificate
  2. Caste Validity
  3. Adhar Card